सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

व्यापक जन सांस्कृतिक आंदोलन खड़े करने होंगे

द्वितीय शिवराम स्मृति दिवस समारोह
जन सांस्कृतिक आंदोलन खड़े करने होंगे

कोटा, 2 अक्टूबर 2012.सुप्रसिद्ध कवि, नाट्य लेखक, निर्देशक, समीक्षक एवं विचारक शिवराम के द्वितीय स्मृति दिवस पर ‘विकल्प’ जन सांस्कृतिक मंच, श्रमजीवी विचार मंच एवं अभिव्यक्ति नाट्य एवं कला मंच द्वारा 30 सितम्बर व 1 अक्टूबर को ‘आशीर्वाद हॉल’ कोटा में दो दिवसीय वृहत साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजन किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य शिवराम द्वारा जीवन-पर्यन्त साहित्य, संस्कृति, समाज, राजनीति एवं विविध क्षेत्रों में किये गये प्रयत्नों को एकसूत्रता में पिरोना, उनकी स्मृति को संकल्प में तथा शोक को संकल्प में ढालने का साझा प्रयास था। आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से आमंत्रित लेखकों व संस्कृतिकर्मियों के अलावा हाड़ौती-अंचल के करीब दो सौ से अधिक रचनाकार, श्रोता व पाठक शामिल हुए।

इस महत्वपूर्ण आयोजन में जनवादी रचनाकारों व संस्कृतिकर्मियों ने बाजारवादी अप-संस्कृति एवं सामन्ती संस्कृति के खिलाफ नई जनपक्षधर संस्कृति का विकल्प खड़ा करने की जरूरत बताई। साथ ही बताया कि पूंजीवादी राजनीति का घिनौना चेहरा जनतांत्रिक मूल्यों को तहस-नहस कर रहा है। ऐसे में व्यापक जन-आंदोलन का माहौल बनाना होगा। आयोजन का प्रारम्भ 30 सितम्बर को मुख्य अतिथि, ‘विकल्प’ अ.भा. जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ( मुजफ्फरपुर ) द्वारा मशाल प्रज्ज्वलित करके किया गया। सुप्रसिद्ध भोजपुरी गायक दीपक कुमार ( सीवान ) की अगुआई में मोर्चा के बैनर-गीत ‘ये वक्त की आवाज है मिल के चलो’ के पश्चात् वासुदेव प्रसाद ( गया) , प्रशांत पुष्कर ( सीवान ) एवं शरद तैलंग ( कोटा ) द्वारा शिवराम के जन-गीतों तथा गण-संगीत की प्रभावी प्रस्तुति की गई। ‘विकल्प’ जनसांस्कृतिक मंच के सचिव शकूर अनवर द्वारा स्वागत-वक्तव्य में अतिथियों का स्वागत करते हुए आयोजन के उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया।

      परिचर्चा में विचार व्यक्त करते हरेराम ‘समीप’ ( फरीदाबाद )
परिचर्चा में विचार व्यक्त करते शैलेन्द्र चौहान ( दिल्ली )
परिचर्चा में विचार व्यक्त करते डॉ.रामशंकर तिवारी ( फरीदाबाद )
अपरान्ह 3 बजे ‘‘सांस्कृतिक नव जागरण: परिदृश्य एवं संभावनाऐं’’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में दिल्ली, हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश व अन्य स्थानों के जाने-माने साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये। विशिष्ट-अतिथि हरेराम ‘समीप’ ( फरीदाबाद ) ने कहा कि कार्पोरेट घरानों और शासक दलों की सांठ-गांठ के चलते विषमता और असमानता चरम पर पहुंच गई है। सांस्कृतिक क्षरण भी चरम पर है। ऐसे दुर्योधन-वक्त में व्यापक जन-आंदोलन खड़ा करने के लिए जनता को जगाना होगा। शैलेन्द्र चैहान ( दिल्ली ) ने कहा कि हमें सामंती संस्कृति के मुकाबले नई वैकल्पिक संस्कृति का निर्माण करना होगा। डॉ. रामशंकर तिवारी ( फरीदाबाद ) ने कहा कि सामंतवादी संस्कृति आज भी समाज में मौजूद है। दक्षिणपंथी ताकतें पुनरुत्थान आंदोलन चला रही हैं। दलितों, आदिवासियों और महिलाओं से भेदभाव के संस्कार हमारे व्यक्तित्व में अंदर तक है। तीज-त्यौहार भी बाजारवादी संस्कृति के हवाले होते जा रहे हैं।

परिचर्चा में विचार व्यक्त करते विजय कुमार चौधरी ( पटना )
परिचर्चा में विचार व्यक्त करते डॉ. रविन्द्र कुमार ‘रवि’ ( मुज़फ्फरपुर )
डॉ. मंजरी वर्मा ( मुजफ्फरपुर ) ने कहा कि हमारी संस्कृति में पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से कई तरह की खामियां पैदा हो गई हैं। शिवराम ने जिस तरह गांव-गांव जाकर नाटकों के मंचन से जन-संस्कृति की अलख जगाई थी, उसी तर्ज पर हमें जुटना होगा। नारायश शर्मा ( कोटा ) ने कहा कि संस्कृति के क्षेत्र में घालमेल नहीं होना चाहिए। मीडिया दिन-रात मुट्ठीभर अमीरों की संस्कृति का प्रचार कर रहा है, सांस्कृतिक नव-जागरण के लिए करोड़ों गरीबों व मेहनतकशों की संस्कृति का परचम ही उठाना होगा। पटना से आये विजय कुमार चैधरी ने कहा कि इन दिनों प्रगतिशील-जनवादी संस्कृतिकर्मियों व उनकी पत्रिकाओं के बीच भी रहस्यवाद, भाग्यवाद व कलावाद के पक्षधर स्थान पाने लगे हैं, इस प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए। डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ने समाहार करते हुए कहा कि इस समय बाजारवादी - सामंती संस्कृति अपने पतन की पराकाष्ठा पर है तथा आम-जन को गहरे भटकावों में फॅंसा रही है। ऐसे समय में हमें भारतेन्दु, प्रेमचन्द, राहुल, निराला, नागार्जुन, यादवचन्द्र व शिवराम की तरह जनता को जगाने के लिए देशव्यापी सांस्कृतिक अभियान छेड़ना होगा।

अध्यक्ष मण्डल की ओर से बोलते हुए तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी. यादव ने कहा कि किसी भी देश के विकास में विचार की मुख्य भूमिका होती है। डॉ. नरेन्द्रनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि जागरूक संस्कृति कर्म द्वारा समाज की प्रचलित रूढि़यों व मूल्यहीनता को एक हद तक रोका जा सकता है। परिचर्चा में टी.जी. विजय कुमार, शून्य आकांक्षी, वीरेन्द्र विद्यार्थी एवं विजय सिंह पालीवाल ने भी अपने विचार व्यक्त किये। संचालन महेन्द्र नेह ने किया।

समारोह के दूसरे दिन 1 अक्टूबर, 12 को शिवराम द्वारा लिखित नाटक ‘नाट्य-रक्षक’ की बेहद प्रभावशाली प्रस्तुति ‘अनाम’ कोटा के कलाकारों द्वारा की गई। नाटक में वर्तमान ‘मतदान-पद्धति’, जिसे भारतीय लोकतंत्र का आधार बताकर प्रचारित किया जाता है, का चरित्र पूरी तरह पैसे और बाहुबल द्वारा निर्धारित हो जाने पर करारा व्यंग्य किया गया। अजहर अली द्वारा निर्देशित इस नाटक में प्रमुख पात्रों की भूमिका डॉ पवन कुमार स्वर्णकार, भरत यादव, रोहित पुरुषोत्तम, आकाश सोनी, तपन झा, गौरांग, देवेन्द्र खुराना, राकेश, सचिन राठौड़ व अजहर अली ने निभाई। गया से पधारे नाट्य-कर्मी वासुदेव एवं कृष्णा जी द्वारा प्रेमचन्द की कहानी ‘सद्गति’ की मगही भाषा में प्रभावी नाट्य-प्रस्तुति भी की गई।

इस अवसर पर ‘विकल्प’ अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी सम्पन्न हुई। बैठक में मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव महेन्द्र नेह द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन में अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय परिस्थितियों में आ रहे महत्वपूर्ण परिवर्तनों को रेखांकित करते हुए साहित्य व संस्कृति के क्षेत्र में शहर से गांवों तक जन-संस्कृति की मुहिम छेड़ने, देशभर में प्रगतिशील जनवादी लेखकों व संस्कृतिकर्मियों के बीच व्यापक एकता विकसित करने तथा संस्कृतिकर्म को मेहनतकश जनता के जीवन-संघर्षों से जोड़ने पर बल दिया गया। बैठक में संगठन को मजबूत करने के साथ आगामी कार्यक्रम की रूपरेखा भी निर्धारित की गई।

इस समारोह में रवि कुमार ( रावतभाटा ) द्वारा, कविता-पोस्टर प्रदर्शनी और ‘विकल्प’ द्वारा एक लघु-पुस्तिका प्रदर्शनी भी लगाई गई थी जिसमें दर्शकों और पाठकों ने अपनी गहरी रुचि प्रदर्शित की। ‘कविता पोस्टर प्रदर्शनी’ का उद्घाटन तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी. यादव द्वारा किया गया। इस अवसर पर शिवराम की पत्नी श्रीमती सोमवती देवी एवं अन्य अतिथियों द्वारा महेन्द्र नेह द्वारा संपादित ‘अभिव्यक्ति’ पत्रिका के शिवराम विशेषांक का लोकार्पण किया गया।

1 अक्टूबर को दूसरे सत्र में वृहत् कवि-सम्मेलन एंव मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता निर्मल पाण्डेय व अखिलेश अंजुम ने की। विशिष्ट अतिथि जनवादी कवि अलीक ( रतलाम ), मदन मदिर ( बूंदी ) व सी.एल. सांखला ( टाकरवाड़ा ) सहित अंचल के प्रतिनिधि कवियों व शायरों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। ओम नागर, हितेश व्यास व उदयमणि द्वारा शिवराम को समर्पित कविताऐं सुनाईं। संचालन आर.सी. शर्मा ‘आरसी’ द्वारा किया गया। स्वागत-समिति की ओर से दिनेशराय द्विवेदी, जवाहरलाल जैन, धर्मनारायण दुबे, शब्बीर अहमद व परमानन्द कौशिक द्वारा सभी अतिथियों व सहभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

०००००

बुधवार, 16 मई 2012

वर्गीय समाज में साहित्य व कला का स्वरूप भी वर्गीय होता है

(सारण में आयोजि‍त बि‍हार राज्‍य जनवादी सांस्‍कृति‍क मोर्चा के सम्‍मेलन की रि‍पोर्ट-)
सारण : ‘विकल्प’ अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा से सम्बद्ध बिहार राज्य जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा का 9वाँ सम्मेलन छपरा के सारण-जनपद के गाँव कोहड़ा-बाजार में भारी उत्साह एवं साहित्य-कला-संस्कृति के क्षेत्र में नई संकल्पबद्धता के साथ 24 से 26 मार्च, 2012 को सम्पन्न हुआ। आयोजन स्थल सहित गाँव के प्रमुख मार्गों को मोर्चा की विभिन्न इकाइयों के रंग-बिरंगे बैनरों, प्रगतिशील साहित्यकारों की तस्वीरों, सामाजिक नारों एवं स्वागत द्वारों से सजाया गया।

जन संस्कृतिकर्मियों के इस अनूठे आयोजन का स्वरूप व सरंचना प्रचलित-आयोजनों से कई मायनों में भिन्न एवं लकीर से हट कर थी। सबसे बड़ी विशेषता यह कि शहरी तामझाम और मीडिया की चमक-दमक से अप्रभावित यह सम्मेलन पूरी तरह ग्रामीण-परिवेश में आयोजित किया गया। भोजपुरी भाषा-भाषी इस अंचल में आज भी महापंडित राहुल सांकृत्यायन, शहीद छट्टू गिरि, भिखारी ठाकुर और महेन्द्र मिसिर के सृजन और संघर्षों की गाथायें और सुगंध व्याप्त है। बिहार के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से मुजफ्फरपुर, छपना, सिवान, गया आदि के जनपदों से मोर्चा के प्रतिनिधियों एवं उनकी इकाइयों ने तीन दिन तक जिस तरह लोक-भाषाओं में गण-संगीत, लोक संगीत व लोक नाट्य शैलियों में मंच पर अपनी प्रस्तुतियॉं दीं,  वे न केवल कला-शिल्प की दृष्टि से अपितु गहरे जन-सरोकारों और सामाजिक सांस्कृतिक जन-जागरण की भावनाओं और इरादों से भी पूरी तरह सम्प्रक्त थीं।
इस आयोजन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि सम्मेलन में शामिल लेखकों, रंगकर्मियों, निर्देशकों, नर्तकों व गायकों में मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों के मुकाबले ग्रामीण परिवेश में संघर्षमय जीवन बिता रहे किसानों, श्रमिकों, अध्यापकों, छोटे दुकानदारों व खेतिहर मजदूरों, युवा तरुणों व तरुणियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक थी। यही नहीं मंच की प्रस्तुतियों के केन्द्र में भी श्रमजीवी जनगण के जीवन की सचाइयाँ, सपने, उमंगे और सामाजिक-परिवर्तन की उद्दाम आकांक्षाऐ थीं। यही कारण था कि आसपास के सभी गाँवों व जनपदों से दर्शकों व श्रोताओं का ताँता लगा रहा।

सम्मेलन का प्रारम्भ बिहार जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा के अध्यक्ष वासुदेव प्रसाद द्वारा झण्डात्तोलन के साथ किया गया। मेजबान सीवान की जाग्रति-इकाई की ओर से साथी दीपक की अगुआई में शहीद गान की प्रस्तुति दी गई। मोर्चा के अखिल भारतीय अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ने सम्मेलन का विधिवत उद्घाटन करते हुए कहा कि बिहार राज्य जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा तमाम अवरोधों के बावजूद आज राज्य में जनवादी संस्कृति के फरहरे को ऊँचा उठाये अबाध गति से आगे बढ़ रहा है। मोर्चा के कलाकार कुसंस्कृति के विरुद्ध आंदोलन एवं स्वस्थ जनवादी संस्कृति के प्रसार के लिये संकल्पबद्ध हैं। मोर्चा अपने निर्माणकाल से ही इस लड़ाई को लड़ता रहा है और अंतिम दम तक लड़ता रहेगा। यह वह संगठन है जिसने पूँजीवादी सामंती अप-संस्कृति से कभी हाथ नहीं मिलाया और हमारे कलाकर्मी हमेशा उसके कृत्रिम प्रभा-मंडल को चुनौती देते रहे। यह संगठन आम जनता की संस्कृति की रक्षा एवं समाज की सृजनशील शक्तियों मजदूरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों, युवा एवं महिलाओं के सामाजिक-सांस्कृतिक उन्नयन के लिए सक्रिय तथा उनके आर्थिक व राजनीतिक संघर्षों का हमसफर है।
अतिथि-सत्र को सम्बोधित करते हुए जे.पी. विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्‍टर वीरेन्द्र नारायण यादव ने भोजपुरी गीतों एवं फिल्मों में आई अश्‍लीलता पर चिन्ता व्यक्त करते हुए अपसंस्कृति के मुकाबले स्वस्थ सांस्कृतिक वातावरण बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। डॉक्‍टर लाल बाबू यादव ने प्रगतिशील व स्वस्थ संस्कृति के निर्माण में रचनाकारों व कलाकारों की भूमिका को रेखांकित करते हुए युवाजनों को संकल्प के साथ आगे आने का आह्नान किया। सत्र को सम्बोधित करने वालों में सी.पी.एफ. के कामरेड सतेन्द्र कुमार, जन सांस्कृतिक मंच के कामेश्‍वर प्रसाद ‘दिनेश’ के अलावा अरुण कुमार,  भूपनारायण सिंह, चन्द्रमोहन, मनोज कुमार वर्मा तथा तंग इनायतपुरी आदि प्रमुख थे। इस सत्र की अध्यक्षता सुमन गिरि, विनोद एवं कृष्णनन्दन सिंह के अध्यक्ष मण्डल ने की।

रात्रि आठ बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत जागृति सीवान के कलाकारों- दीपक कुमार,  स्नेहलता,  रश्मि कुमारी, विनोद कुमार, धनंजय कुमार ने बैनर गीत ‘ये वक्त की आवाज है- मिल के चलो’ तथा बी. प्रशान्त के गीत ‘घर घर में मचल कोहराम’ से हुई। साहेबगंज के अरुण कुमार, मोहम्मद तैय्यब, सोनू कुमार एवं साथियों ने भाव-नृत्य ‘बनस राजा के बिगड़ल काम’ तथा कव्वाली की प्रस्तुति से दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। उसके बाद गुरुशरण सिंह के नाटक ‘जंगीराम की हवेली’ की प्रभावी नाट्य प्रस्तुति अरुण कुमार व सोनू कुमार के निर्देशन में की गई। रात्रि एक बजे तक रजवाड़ा, हलीमपुर, खाड़ी पाकर, सीवान एवं छपरा के कलाकारों द्वारा जनसंस्कृति से लैस भाव-नृत्य, संगीत, नाटक एवं गीतों की प्रस्तुति को साहेबगंज के भूपनारायण सिंह की उद्घोषणा शैली ने सुदूर देहातों से आये श्रोताओं को बांधे रखा।
दूसरे दिन के समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित ‘विकल्प’ अ.भा. जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा के महासचिव महेन्द्र नेह ने कहा कि वर्गीय समाज में साहित्य व कला का स्वरूप भी वर्गीय होता है। अतः सर्वहारा वर्ग के साहित्य व कला को आगे बढ़ाना हमारा प्राथमिक उद्देश्य है। दुनिया व हमारे देश की श्रेष्ठ परम्परा, विश्‍व-संस्कृति की धरोहर हमारी अपनी है। हमें तर्क-संगत ज्ञान व दर्शन की मात्र व्याख्या नहीं करनी, उसे सृजनात्मक व क्रियात्मक बनाना है। उन्होंने बिहार के मोर्चा से जुड़े कला-कर्मियों की सराहना करते हुए कहा कि वे वैश्‍वि‍क बाजारवादी सांस्कृतिक हमले और सामन्ती भाग्यवादी संस्कृति व तंत्र-मंत्र के विरुद्ध नये मनुष्य की संस्कृति रच रहे हैं। मोर्चा द्वारा अन्य सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर सारण-अंचल, गया आदि में वर्ण व्यवस्था पर आधारित विवाह की परम्परागत पद्धति के स्थान पर जन विवाह पद्धति का विकास करके तथा श्राद्ध व पिण्डदान की परम्परा को निषेध करके नये सामाजिक-आंदोलन का सूत्रपात किया जा रहा है। उन्होंने साहित्यकारों व संस्कृतिकर्मियों से देश व दुनिया में चल रहे नये आंदोलनों से संस्कृतिकर्म को जोड़ने का आह्नान किया।

पटना से पधारे विशिष्ट अतिथि डॉक्‍टर अर्जुन तिवारी ने कहा कि मोर्चा द्वारा जिस सांस्कृतिक विकल्प की प्रस्तुति की जा रही है, उसका प्रसार पूरे देश में होना चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर राहुल-नागार्जुन व यादवचन्द्र की त्रयी को स्मरण करते हुए कहा कि इन तीनों ने समाज से ऊँच-नीच का अंतर मिटाने के लिए सृजन किया। उन्होंने अंचल के महान जनसंस्कृतिकर्मी भिखारी ठाकुर को याद करते हुए कहा कि यह सम्मेलन नये इतिहास की रचना करेगा। मुजफ्फरपुर से आये जन सांस्कृतिक मंच के रंगकर्मी साथी कामेश्‍वर प्रसाद ‘दिनेश’ ने कहा कि मोर्चा बिहार के जन संस्कृतिकर्मियों की ताकत है। हम अन्य बिरादराना संगठनों के साथ मिलकर काम करें। इस सम्मेलन के जुझारू तेवर की धमक देश के अन्य हिस्सों में भी जानी चाहिये। सम्मेलन की दूसरी रात भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियों के साथ मशहूर शायर तंग इनायतपुरी के संयोजन में कवि-सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता राजस्थान से पधारे महेन्द्र नेह ने तथा उद्घाटन दिल्ली से पधारे शैलेन्द्र चौहान द्वारा किया गया। महत्वपूर्ण कवियों- सुभाषचन्द्र यादव, कृष्ण पुरी, मनोज कुमार वर्मा, विभाकर विमल, सत्येन्द्र नारायण, सत्येन्द्र नारायण चौधरी, रेखा चौधरी, वासुदेव प्रसाद, नरेन्द्र सुजन, कुमारी दीक्षा, दीपक कुमार, राधिका रंजन सुधीर, फहीम योगापुरी, डॉक्‍टर रवीन्द्र ‘रवि’ आदि द्वारा काव्य-पाठ किया गया।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में सीवान इकाई द्वारा यादवचन्द्र द्वारा लिखित नाटक ‘जॉब वैकेंसी’,  गया के रंगकर्मियों द्वारा प्रेमचन्द की कहानी ‘सद्गति’ का नाट्य-रूपांतरण एवं मालीघाट इकाई द्वारा ‘मशीन’ नाटक की सफल प्रस्तुतियाँ दी गईं। सारण के कलाकारों द्वारा भोजपुरी में ‘हमनी के सुधार कइसे होई’ की मधछोड़वा-शैली में बेजोड़ प्रस्तुति की गई। सीवान के रंगकर्मियों द्वारा सुप्रसिद्ध गायक व संगीतकार दीपक के नेतृत्व में गण-संगीत के साथ फैज अहमद ‘फैज’, अदम गोंडवी,  दुष्यंत कुमार, गोरख पाण्डेय, महेन्द्र नेह, बी प्रशांत आदि जन-गीतकारों की रचनाओं को श्रोताओं द्वारा बेहद सराहा गया।
दिल्ली से पधारे ‘विकल्प’ के अलि‍ख भारतीय सचिव प्रसिद्ध साहित्यकार एवं मुख्य अतिथि शैलेन्द्र चौहान ने कहा कि साम्राज्यवादी ताकतों ने दुनियाभर में जो आर्थिक शोषण तंत्र फैलाया है, उसे ‘विकास’ का नाम दिया जा रहा है। इस शोषण तंत्र के पीछे अत्याधुनिक हथियारों द्वारा विश्‍व जन-गण पर किये जा रहे हमलों के साथ-साथ मीडिया द्वारा अहर्निश किया जा रहा सांस्कृतिक हमला भी शामिल है। उन्होंने कहा कि आज जब देश की राजनीति विश्‍वसनीयता खोती जा रही है, संस्कृतिकर्मियों को पहल करके जनता के साथ खड़ा होना और राह दिखाना होगा। उन्होंने सांस्कृतिक-कार्यक्रमों एवं साहित्य के स्तर व शिल्प को भी पूँजीवादी कला-साहित्य के मुकाबले ऊँचा उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।
इस सत्र को सम्बोधित करते हुए एम.सी.पी.आई. (यू) के महासचिव कामरेड विजय चौधरी ने कहा कि आज बाजारवाद की चकाचौंध से निकलकर हमारे कलाकार जीवन आपदाओं से जूझती जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करें, यही वक्त की पुकार है। सम्मेलन में भाग ले रहे बिहार के विभिन्न हिस्सों से आये करीब दो सौ प्रतिनिधियों एवं कलाकारों ने महासचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर अपना मत व्यक्त किया तथा आगामी समय की कार्ययोजना तय की गई।
अंतिम दौर के सत्र में सम्मेलन ने अगली अवधि के लिए राज्य कमेटी का गठन किया।
सम्मेलन में डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ के सम्पादन में प्रकाशित स्मारिका का विमोचन विशिष्ट अतिथि डॉ. अर्जुन तिवारी द्वारा किया गया। सत्रारम्भ में आगन्तुकों का अभिनन्दन स्वागत मंत्री रमाशंकर गिरि ने किया और धन्यवाद ज्ञापन दीपक कुमार ने। स्वागताध्यक्ष काशीनाथ सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि सम्मेलन निश्‍चि‍त ही बाजारवादी साम्राज्यवादी संस्कृति के मुकाबले लोक व जन-संस्कृति की श्रेष्ठता को प्रमाणित करेगा तथा इससे देश के जनपक्षधर साहित्यकारों व कला-कर्मियों के बीच नया संदेश जायेगा।
प्रस्तुति: दीपक कुमार और  उदय शंकर ‘गुड्डू’