बुधवार, 16 मई 2012

वर्गीय समाज में साहित्य व कला का स्वरूप भी वर्गीय होता है

(सारण में आयोजि‍त बि‍हार राज्‍य जनवादी सांस्‍कृति‍क मोर्चा के सम्‍मेलन की रि‍पोर्ट-)
सारण : ‘विकल्प’ अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा से सम्बद्ध बिहार राज्य जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा का 9वाँ सम्मेलन छपरा के सारण-जनपद के गाँव कोहड़ा-बाजार में भारी उत्साह एवं साहित्य-कला-संस्कृति के क्षेत्र में नई संकल्पबद्धता के साथ 24 से 26 मार्च, 2012 को सम्पन्न हुआ। आयोजन स्थल सहित गाँव के प्रमुख मार्गों को मोर्चा की विभिन्न इकाइयों के रंग-बिरंगे बैनरों, प्रगतिशील साहित्यकारों की तस्वीरों, सामाजिक नारों एवं स्वागत द्वारों से सजाया गया।

जन संस्कृतिकर्मियों के इस अनूठे आयोजन का स्वरूप व सरंचना प्रचलित-आयोजनों से कई मायनों में भिन्न एवं लकीर से हट कर थी। सबसे बड़ी विशेषता यह कि शहरी तामझाम और मीडिया की चमक-दमक से अप्रभावित यह सम्मेलन पूरी तरह ग्रामीण-परिवेश में आयोजित किया गया। भोजपुरी भाषा-भाषी इस अंचल में आज भी महापंडित राहुल सांकृत्यायन, शहीद छट्टू गिरि, भिखारी ठाकुर और महेन्द्र मिसिर के सृजन और संघर्षों की गाथायें और सुगंध व्याप्त है। बिहार के विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से मुजफ्फरपुर, छपना, सिवान, गया आदि के जनपदों से मोर्चा के प्रतिनिधियों एवं उनकी इकाइयों ने तीन दिन तक जिस तरह लोक-भाषाओं में गण-संगीत, लोक संगीत व लोक नाट्य शैलियों में मंच पर अपनी प्रस्तुतियॉं दीं,  वे न केवल कला-शिल्प की दृष्टि से अपितु गहरे जन-सरोकारों और सामाजिक सांस्कृतिक जन-जागरण की भावनाओं और इरादों से भी पूरी तरह सम्प्रक्त थीं।
इस आयोजन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि सम्मेलन में शामिल लेखकों, रंगकर्मियों, निर्देशकों, नर्तकों व गायकों में मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों के मुकाबले ग्रामीण परिवेश में संघर्षमय जीवन बिता रहे किसानों, श्रमिकों, अध्यापकों, छोटे दुकानदारों व खेतिहर मजदूरों, युवा तरुणों व तरुणियों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक थी। यही नहीं मंच की प्रस्तुतियों के केन्द्र में भी श्रमजीवी जनगण के जीवन की सचाइयाँ, सपने, उमंगे और सामाजिक-परिवर्तन की उद्दाम आकांक्षाऐ थीं। यही कारण था कि आसपास के सभी गाँवों व जनपदों से दर्शकों व श्रोताओं का ताँता लगा रहा।

सम्मेलन का प्रारम्भ बिहार जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा के अध्यक्ष वासुदेव प्रसाद द्वारा झण्डात्तोलन के साथ किया गया। मेजबान सीवान की जाग्रति-इकाई की ओर से साथी दीपक की अगुआई में शहीद गान की प्रस्तुति दी गई। मोर्चा के अखिल भारतीय अध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ने सम्मेलन का विधिवत उद्घाटन करते हुए कहा कि बिहार राज्य जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा तमाम अवरोधों के बावजूद आज राज्य में जनवादी संस्कृति के फरहरे को ऊँचा उठाये अबाध गति से आगे बढ़ रहा है। मोर्चा के कलाकार कुसंस्कृति के विरुद्ध आंदोलन एवं स्वस्थ जनवादी संस्कृति के प्रसार के लिये संकल्पबद्ध हैं। मोर्चा अपने निर्माणकाल से ही इस लड़ाई को लड़ता रहा है और अंतिम दम तक लड़ता रहेगा। यह वह संगठन है जिसने पूँजीवादी सामंती अप-संस्कृति से कभी हाथ नहीं मिलाया और हमारे कलाकर्मी हमेशा उसके कृत्रिम प्रभा-मंडल को चुनौती देते रहे। यह संगठन आम जनता की संस्कृति की रक्षा एवं समाज की सृजनशील शक्तियों मजदूरों, किसानों, दलितों, आदिवासियों, युवा एवं महिलाओं के सामाजिक-सांस्कृतिक उन्नयन के लिए सक्रिय तथा उनके आर्थिक व राजनीतिक संघर्षों का हमसफर है।
अतिथि-सत्र को सम्बोधित करते हुए जे.पी. विश्‍वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्‍टर वीरेन्द्र नारायण यादव ने भोजपुरी गीतों एवं फिल्मों में आई अश्‍लीलता पर चिन्ता व्यक्त करते हुए अपसंस्कृति के मुकाबले स्वस्थ सांस्कृतिक वातावरण बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। डॉक्‍टर लाल बाबू यादव ने प्रगतिशील व स्वस्थ संस्कृति के निर्माण में रचनाकारों व कलाकारों की भूमिका को रेखांकित करते हुए युवाजनों को संकल्प के साथ आगे आने का आह्नान किया। सत्र को सम्बोधित करने वालों में सी.पी.एफ. के कामरेड सतेन्द्र कुमार, जन सांस्कृतिक मंच के कामेश्‍वर प्रसाद ‘दिनेश’ के अलावा अरुण कुमार,  भूपनारायण सिंह, चन्द्रमोहन, मनोज कुमार वर्मा तथा तंग इनायतपुरी आदि प्रमुख थे। इस सत्र की अध्यक्षता सुमन गिरि, विनोद एवं कृष्णनन्दन सिंह के अध्यक्ष मण्डल ने की।

रात्रि आठ बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत जागृति सीवान के कलाकारों- दीपक कुमार,  स्नेहलता,  रश्मि कुमारी, विनोद कुमार, धनंजय कुमार ने बैनर गीत ‘ये वक्त की आवाज है- मिल के चलो’ तथा बी. प्रशान्त के गीत ‘घर घर में मचल कोहराम’ से हुई। साहेबगंज के अरुण कुमार, मोहम्मद तैय्यब, सोनू कुमार एवं साथियों ने भाव-नृत्य ‘बनस राजा के बिगड़ल काम’ तथा कव्वाली की प्रस्तुति से दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। उसके बाद गुरुशरण सिंह के नाटक ‘जंगीराम की हवेली’ की प्रभावी नाट्य प्रस्तुति अरुण कुमार व सोनू कुमार के निर्देशन में की गई। रात्रि एक बजे तक रजवाड़ा, हलीमपुर, खाड़ी पाकर, सीवान एवं छपरा के कलाकारों द्वारा जनसंस्कृति से लैस भाव-नृत्य, संगीत, नाटक एवं गीतों की प्रस्तुति को साहेबगंज के भूपनारायण सिंह की उद्घोषणा शैली ने सुदूर देहातों से आये श्रोताओं को बांधे रखा।
दूसरे दिन के समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित ‘विकल्प’ अ.भा. जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा के महासचिव महेन्द्र नेह ने कहा कि वर्गीय समाज में साहित्य व कला का स्वरूप भी वर्गीय होता है। अतः सर्वहारा वर्ग के साहित्य व कला को आगे बढ़ाना हमारा प्राथमिक उद्देश्य है। दुनिया व हमारे देश की श्रेष्ठ परम्परा, विश्‍व-संस्कृति की धरोहर हमारी अपनी है। हमें तर्क-संगत ज्ञान व दर्शन की मात्र व्याख्या नहीं करनी, उसे सृजनात्मक व क्रियात्मक बनाना है। उन्होंने बिहार के मोर्चा से जुड़े कला-कर्मियों की सराहना करते हुए कहा कि वे वैश्‍वि‍क बाजारवादी सांस्कृतिक हमले और सामन्ती भाग्यवादी संस्कृति व तंत्र-मंत्र के विरुद्ध नये मनुष्य की संस्कृति रच रहे हैं। मोर्चा द्वारा अन्य सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर सारण-अंचल, गया आदि में वर्ण व्यवस्था पर आधारित विवाह की परम्परागत पद्धति के स्थान पर जन विवाह पद्धति का विकास करके तथा श्राद्ध व पिण्डदान की परम्परा को निषेध करके नये सामाजिक-आंदोलन का सूत्रपात किया जा रहा है। उन्होंने साहित्यकारों व संस्कृतिकर्मियों से देश व दुनिया में चल रहे नये आंदोलनों से संस्कृतिकर्म को जोड़ने का आह्नान किया।

पटना से पधारे विशिष्ट अतिथि डॉक्‍टर अर्जुन तिवारी ने कहा कि मोर्चा द्वारा जिस सांस्कृतिक विकल्प की प्रस्तुति की जा रही है, उसका प्रसार पूरे देश में होना चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर राहुल-नागार्जुन व यादवचन्द्र की त्रयी को स्मरण करते हुए कहा कि इन तीनों ने समाज से ऊँच-नीच का अंतर मिटाने के लिए सृजन किया। उन्होंने अंचल के महान जनसंस्कृतिकर्मी भिखारी ठाकुर को याद करते हुए कहा कि यह सम्मेलन नये इतिहास की रचना करेगा। मुजफ्फरपुर से आये जन सांस्कृतिक मंच के रंगकर्मी साथी कामेश्‍वर प्रसाद ‘दिनेश’ ने कहा कि मोर्चा बिहार के जन संस्कृतिकर्मियों की ताकत है। हम अन्य बिरादराना संगठनों के साथ मिलकर काम करें। इस सम्मेलन के जुझारू तेवर की धमक देश के अन्य हिस्सों में भी जानी चाहिये। सम्मेलन की दूसरी रात भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियों के साथ मशहूर शायर तंग इनायतपुरी के संयोजन में कवि-सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता राजस्थान से पधारे महेन्द्र नेह ने तथा उद्घाटन दिल्ली से पधारे शैलेन्द्र चौहान द्वारा किया गया। महत्वपूर्ण कवियों- सुभाषचन्द्र यादव, कृष्ण पुरी, मनोज कुमार वर्मा, विभाकर विमल, सत्येन्द्र नारायण, सत्येन्द्र नारायण चौधरी, रेखा चौधरी, वासुदेव प्रसाद, नरेन्द्र सुजन, कुमारी दीक्षा, दीपक कुमार, राधिका रंजन सुधीर, फहीम योगापुरी, डॉक्‍टर रवीन्द्र ‘रवि’ आदि द्वारा काव्य-पाठ किया गया।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में सीवान इकाई द्वारा यादवचन्द्र द्वारा लिखित नाटक ‘जॉब वैकेंसी’,  गया के रंगकर्मियों द्वारा प्रेमचन्द की कहानी ‘सद्गति’ का नाट्य-रूपांतरण एवं मालीघाट इकाई द्वारा ‘मशीन’ नाटक की सफल प्रस्तुतियाँ दी गईं। सारण के कलाकारों द्वारा भोजपुरी में ‘हमनी के सुधार कइसे होई’ की मधछोड़वा-शैली में बेजोड़ प्रस्तुति की गई। सीवान के रंगकर्मियों द्वारा सुप्रसिद्ध गायक व संगीतकार दीपक के नेतृत्व में गण-संगीत के साथ फैज अहमद ‘फैज’, अदम गोंडवी,  दुष्यंत कुमार, गोरख पाण्डेय, महेन्द्र नेह, बी प्रशांत आदि जन-गीतकारों की रचनाओं को श्रोताओं द्वारा बेहद सराहा गया।
दिल्ली से पधारे ‘विकल्प’ के अलि‍ख भारतीय सचिव प्रसिद्ध साहित्यकार एवं मुख्य अतिथि शैलेन्द्र चौहान ने कहा कि साम्राज्यवादी ताकतों ने दुनियाभर में जो आर्थिक शोषण तंत्र फैलाया है, उसे ‘विकास’ का नाम दिया जा रहा है। इस शोषण तंत्र के पीछे अत्याधुनिक हथियारों द्वारा विश्‍व जन-गण पर किये जा रहे हमलों के साथ-साथ मीडिया द्वारा अहर्निश किया जा रहा सांस्कृतिक हमला भी शामिल है। उन्होंने कहा कि आज जब देश की राजनीति विश्‍वसनीयता खोती जा रही है, संस्कृतिकर्मियों को पहल करके जनता के साथ खड़ा होना और राह दिखाना होगा। उन्होंने सांस्कृतिक-कार्यक्रमों एवं साहित्य के स्तर व शिल्प को भी पूँजीवादी कला-साहित्य के मुकाबले ऊँचा उठाने की आवश्यकता पर बल दिया।
इस सत्र को सम्बोधित करते हुए एम.सी.पी.आई. (यू) के महासचिव कामरेड विजय चौधरी ने कहा कि आज बाजारवाद की चकाचौंध से निकलकर हमारे कलाकार जीवन आपदाओं से जूझती जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरी करें, यही वक्त की पुकार है। सम्मेलन में भाग ले रहे बिहार के विभिन्न हिस्सों से आये करीब दो सौ प्रतिनिधियों एवं कलाकारों ने महासचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर अपना मत व्यक्त किया तथा आगामी समय की कार्ययोजना तय की गई।
अंतिम दौर के सत्र में सम्मेलन ने अगली अवधि के लिए राज्य कमेटी का गठन किया।
सम्मेलन में डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ के सम्पादन में प्रकाशित स्मारिका का विमोचन विशिष्ट अतिथि डॉ. अर्जुन तिवारी द्वारा किया गया। सत्रारम्भ में आगन्तुकों का अभिनन्दन स्वागत मंत्री रमाशंकर गिरि ने किया और धन्यवाद ज्ञापन दीपक कुमार ने। स्वागताध्यक्ष काशीनाथ सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि सम्मेलन निश्‍चि‍त ही बाजारवादी साम्राज्यवादी संस्कृति के मुकाबले लोक व जन-संस्कृति की श्रेष्ठता को प्रमाणित करेगा तथा इससे देश के जनपक्षधर साहित्यकारों व कला-कर्मियों के बीच नया संदेश जायेगा।
प्रस्तुति: दीपक कुमार और  उदय शंकर ‘गुड्डू’

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