बुधवार, 10 अप्रैल 2013

अप-संस्कृति के विरुद्ध व्यापक जन सांस्कृतिक आन्दोलन का आह्वान

‘विकल्प’ के अ.भा. सम्मेलन में अप-संस्कृति के विरुद्ध व्यापक जन सांस्कृतिक आन्दोलन का आह्वान

‘विकल्प’ के अ.भा. जनवादी सांस्कृतिक सामाजिक मोर्चा का द्वितीय अ.भा. सम्मेलन मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष यादवचन्द्र की कर्मभूमि, बौद्ध-संस्कृति एवं जन-संस्कृति के केन्द्र रहे साहेबगंज, जिला मुजफ्फरपुर, बिहार में 15 से 17 फरवरी, 2013 को प्रसिद्ध रंगकर्मी शिवराम के नाम पर निर्मित शिवराम नगर में सम्पन्न हुआ। 

सम्मेलन में देश के 12 प्रदेशों से दो सौ साहित्यकार, रंगकर्मी व कलाकार सम्मिलित हुए। सम्मेलन का प्रारम्भ ‘विकल्प’ के अ.भा. अध्यक्ष, भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ द्वारा झण्डोलोत्तन एवं जनगायक मण्डली द्वारा झण्डागीत व शहीदगान के साथ हुआ। समारोह के स्वागताध्यक्ष सी.एन. कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राम नरेश पंडित ‘रमण’ ने अतिथियों, प्रतिनिधियों, कलाकारों व साहित्यकारों का क्रान्तिकारी अभिनन्दन व स्वागत करते हुए उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन अप-संस्कृति के विरुद्ध जोरदार चुनौती बन कर उभरेगा।

15 फरवरी को खुले सत्र का उद्घाटन करते हुए डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ने साहित्यकारों व कलाकर्मियों से जनपक्षधर साहित्य व संस्कृति के प्रसार के लिए एकजुट होने की अपील की। उन्होंने साम्राज्यवादी सामन्ती व्यवस्था एवं अभिजनवादी संस्कृति के विरुद्ध देशव्यापी जन आंदोलन चलाने एवं श्रमिकों-किसानों-आदिवासियों के जीवन-संघर्षों को केन्द्र में रखकर वैकल्पिक जन-सांस्कृतिक वातावरण निर्मित करने का आह्वान किया। इस अवसर पर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए ‘विकल्प’ के अ.भा. सचिव शैलेन्द्र चैहान ने कहा कि जनवादी साहित्य व संस्कृति को शहरी अकादमिक घेरेबन्दी से निकालकर गरीब बस्तियों व गांवों में जन-जन के बीच ले जाने की दिशा में यह सम्मेलन एक अनुकरणीय उदाहरण है। सिलीगुड़ी से आये ‘तिस्ता हिमालय’ के संपादक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा कि बाजारवादी संस्कृति फूहड़ता और लम्पटता को बढ़ावा देकर युवकों को गुमराह कर रही है। इसके बरक्स हमें प्रतिरोध की संस्कृति विकसित करनी होगी। चम्पारण से माकपा के पूर्व विधायक रामाश्रय सिंह ने कहा कि प्रगतिशील-जनवादी सांस्कृतिक आंदोलन को एक नई दिशा व ऊर्जा देना जरूरी हो गया है। एम.सी.पी.आई.(यू.) के प्रदेश सचिव विजय कुमार चैधरी ने मोर्चा के कलाकारों का आह्वान किया कि वे देश व दुनियां में साम्राज्यवाद के विरुद्ध चल रहे आंदोलनों के पक्ष में सांस्कृतिक मुहिम छेड़ें तथा संस्कृति को जमीन से जोड़ने का काम करें। खुले अधिवेशन को सम्बोधित करने वालों में डॉ. रमाकान्त शर्मा, शकूर अनवर, रवि कुमार व नारायण शर्मा (राजस्थान), डॉ. रमाशंकर तिवारी (हरियाणा), अनुभवदास शास्त्री (उ.प्र.) एवं मनोज कुमार वर्मा, भूपनारायण सिंह, चन्द्रमोहन, रमाशंकर गिरि, कामेश्वर प्रसाद ‘दिनेश’, दीपक कुमार सीवान सहित विभिन्न संगठों के पदाधिकारी प्रमुख थे। वक्ताओं ने स्वस्थ संस्कृति के निर्माण में जुटे रंगकर्मियों को वर्तमान परिस्थितियों में अपने दायित्व को गंभीरता से लेने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि आज राजनीति निस्तेज हो चुकी है, इसलिए संस्कृति की मशाल हाथ में लेकर समाज को रास्ता दिखाने की जवाबदेही कला-साहित्य के साधकों पर ही है।

प्रतिनिधि सत्र में ‘विकल्प’ के महासचिव महेन्द्र नेह ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में आ रहे बड़े परिवर्तनों की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि अमरीकी व यूरोपीय अर्थ-व्यवस्था का ढांचा गहरे संकट से चरमरा रहा है, ऐसे समय में हमें बाजारवादी संस्कृति के आभासी प्रभामंडल को तोड़ते हुए प्रतिरोध, जन-जागरण एवं नव-अभ्युदय की मुहिम तेज करनी चाहिए। सत्र में देश के विभिन्न प्रदेशों से आये प्रतिनिधियों व पर्यवेक्षकों ने मंहगाई, महिला उत्पीड़न, साम्प्रदायिकता व क्षेत्रवाद, सामन्ती मूल्यों, शिक्षा नीति, मीडिया जनित अप-संस्कृति, युद्धोन्माद के विरुद्ध तथा व्यापक साहित्यिक सांस्कृतिक संयुक्त मोर्चा बनाने के पक्ष में विभिन्न प्रस्ताव पारित किये।

रात्रि में ‘विकल्प’ की मुजफ्फरपुर इकाई द्वारा धीरेन्द्र कुमार ‘धीरू’ के निर्देशन में नाटक ‘मशीन’ एवं छपरा इकाई द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘मदछोड़वा’ की प्रभावी प्रस्तुति में उदयशंकर गुड्डू एवं कमल राय के अभिनय को काफी पसंद किया गया। रजवाड़ा, हलीमपुर एवं सीवान के कलाकारों द्वारा जनगीतों व लोकगीतों ने दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। इस अवसर पर महेन्द्र नेह की अध्यक्षता में कवि-सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें डॉ. रमाकांत शर्मा, शकूर अनवर, डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’, डॉ. रवीन्द्र उपाध्याय, शैलेन्द्र चैहान, श्रवण कुमार, मंजर अली, अली मोहम्मद ‘रंज’, कैसर सिद्दीकी, रवि कुमार, मनोज कुमार वर्मा, वासुदेव प्रसाद, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह, विभाकर ‘विमल’, महेश ठाकुर ‘चकोर’, शिबगतुल्लाह ‘हमीदी’, तारकेश्वर प्रसाद सिंह, नारायण शर्मा, मकरध्वज भगत आदि कवि-शायरों की कविताओं को देर रात तक सुना गया। कवि-सम्मेलन का संचालन एम.एस. कॉलेज मोतिहारी के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार तथा सांस्कृतिक-सत्र का संचालन दीपक कुमार एवं डॉ. कृष्णनन्दन सिंह द्वारा किया गया।

16 फरवरी को महासचिव द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर 27 प्रतिनिधियों ने बहस में हिस्सा लिया। बहस के अन्त में आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। इसी सत्र में अखिल भारतीय कार्यकारिणी का चुनाव सर्वसम्मति से किया गया जिसमें डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ को अध्यक्ष, शैलेन्द्र चैहान व डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह को उपाध्यक्ष, महेन्द्र नेह महासचिव, शकूर अनवर संयुक्त सचिव, डॉ. रामशंकर तिवारी व विनोद कुमार सचिव, मनोज कुमार वर्मा प्रचार सचिव व नारायण शर्मा कोषाध्यक्ष चुने गये। कार्यकारिणी सदस्यों में दीपक कुमार, अनुभवदास शास्त्री, वासुदेव प्रसाद, डॉ. कृष्णनन्दन सिंह, अलीक, गोपाल नायडू, हरेराम समीप, सौरभ चुने गये। महिलाओं के लिए दो स्थान रिक्त रखे गये।

रात्रि में पुनः सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रभावी प्रस्तुतियां हुई, जिन्हें देखने के लिए निकटवर्ती गांवों से बड़ी संख्या में दर्शकगण उपस्थित हुए। कार्यक्रम का प्रारम्भ महाकवि निराला की वसंत पर आधारित प्रसिद्ध रचना ‘अभी न होगा मेरा अंत’ की दीपक कुमार, विनोद, प्रशांत पुष्कर, बाबूलाल साहनी एवं अली मोहम्मद के समवेत स्वरों में हुई। ‘जसम’ के प्रभाकर तिवारी द्वारा पूर्वी गायन को सराहा गया। दूसरे चरण में साहेबगंज की इकाई द्वारा भारतेन्दु के नाटक ‘अंधेर नगरी’ का सफल मंचन तथा मांझी गीत, जट-जटिन, डांडिया, वसंत लोक-नृत्यों एवं पचरा गीत की प्रस्तुतियां हुईं।

सम्मेलन का अंतिम दिवस प्रख्यात माक्र्सवादी जन संस्कृतिकर्मी यादवचन्द्र की स्मृति में अखिल भारतीय समारोह के रूप में मनाया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ‘विकल्प’ बिहार के सचिव चन्द्रमोहन प्रसाद ने की तथा उद्घाटन नालन्दा विश्वविद्यालय के आमंत्रित प्रोफेसर डॉ. अर्जुन तिवारी द्वारा किया गया। समारोह को सम्बोधित करते हुए डॉ. तिवारी ने कहा कि यदि राहुल सांकृत्यायन एवं नागार्जुन को मिला दें तो एक व्यक्तित्व बनता है, जिसका नाम यादवचन्द्र। उन्होंने कहा कि यादवचन्द्र के साहित्यिक-सांस्कृतिक अवदान पर शोध की आवश्यकता है। वे प्रयास करेंगे कि नालन्दा खुला विश्वविद्यालय में हिन्दी व भोजपुरी के पाठ्यक्रमों में यादवचन्द्र की रचनाओं को शामिल किया जाये। डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ ने कहा कि वे कबीर, सरहपा, निराला और मुक्तिबोध की परम्परा के कवि थे। एम.सी.पी.आई.(यू.) के राज्य सचिव विजय कुमार चौधरी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि यादवचन्द्र जनवादी कला संस्कृति के जीवंत विश्वविद्यालय थे। आज के युवा रचनाकारों व रंगकर्मियों को उनके साहित्य, रंगकर्म व जीवन से शिक्षण लेने की आवश्यकता है। प्रखर समीक्षक डॉ. रमाकान्त शर्मा ने यादवचन्द्र को वैज्ञानिक सोच एवं सृजनात्मक ऊर्जा के अप्रतिम स्रोत बताते हुए उनके रचनाकर्म को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता पर बल दिया। प्रसिद्ध आलोचक डॉ. रेवतीरमन ने कहा कि यादवचन्द्र के पथ पर वही रचनाकर्मी चल सकते हैं, जिनमें सर्वहारा संस्कृति के लिए अपना सब कुछ होम कर देने की प्रतिबद्धता हो। ‘विकल्प’ के महासचिव महेन्द्र नेह ने कहा कि यादवचन्द्र का मूल्यांकन अभी शेष है, वे अपने लेखन व कला कर्म में सदैव शोषित-पीडि़तों के साथ खड़े नजर आये। कला संस्कृति में उनके योगदान को भावी पीढ़ी सदा याद रखेगी। डॉ. अरुण कुमार, मनोज कुमार वर्मा, भूपनारायण सिंह, रवि कुमार, कामेश्वर प्रसाद ‘दिनेश’, नारायण शर्मा, विनोद, दीपक, जंग बहादुर सिंह ने भी यादवचन्द्र के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर डॉ. रवीन्द्र कुमार ‘रवि’ एवं डॉ. अर्जुन तिवारी द्वारा संपादित यादवचन्द्र के वर्ग-संघर्ष पर आधारित प्रसिद्ध प्रबन्ध काव्य ‘‘परम्परा और विद्रोह’’ के दूसरे संस्करण, डॉ. रवीन्द्र ‘रवि’ द्वारा सम्पादित स्मारिका तथा महेन्द्र नेह द्वारा सम्पादित साहित्यिक पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ के 40वें अंक को लोकार्पित किया गया।

समारोह के अंत में भव्य सांस्कृतिक समारोह आयोजित किया गया, जिसमें उमेशजी के नेतृत्व में रजवारा, हलीमपुर के कलाकारों द्वारा कव्वाली, सीवान जागृति मंच द्वारा नाटक ‘खेल दर खेला’ तथा मालीघाट इकाई के कलाकारों द्वारा कामेश्वर प्रसाद ‘दिनेश’ के निर्देशन में प्रेमचन्द की कहानी ‘सवासेर गेहूँ’ का नाट्य रूपांतर प्रस्तुत किया गया। नाटक की प्रस्तुति में ग्रामीण जीवन के यथार्थ को जिस कलात्मक उत्कर्ष तक पहुंचाया गया, वह अद्भुत एवं अविस्मरणीय था। नाटक में शंकर की भूमिका में अरुण कुमार वर्मा, पंडित की भूमिका में कामेश्वर प्रसाद ‘दिनेश’ तथा दीना की भूमिका में रणधीर कुमार ने बेहद सशक्त अभिनय किया। इसके अलावा, अनवर, मंगल रघु की भूमिका में सुबोध कुमार, बैजू कुमार, विशाल, सजन, गुलशन एवं बाबा के रूप में महेन्द्र साह ने दर्शकों पर अपनी अभिनय क्षमता की छाप छोड़ी।

सम्मेलन के दौरान कार्यक्रम स्थल पर ‘विकल्प’ की विभिन्न इकाइयों के बैनरों, प्रगतिशील साहित्यकारों के चित्रों एवं कवि-चित्रकार रवि कुमार द्वारा निर्मित कविता पोस्टर प्रदर्शनी दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बनी रही। ‘विकल्प’ के मुजफ्फरपुर जिला सचिव बैजू कुमार ने देश एवं बिहार के सुदूर क्षेत्रों से सम्मेलन में शामिल हुए प्रतिनिधियों, अतिथियों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस सम्मेलन की सफलता का श्रेय अंचल की समृद्ध लोक परम्परा एवं आम जनता को जाता है, जिन्होंने विपरीत मौसम के बावजूद सम्मेलन स्थल पर बड़ी संख्या में उपस्थित होकर इसे आम जन का सांस्कृतिक सम्मेलन बना दिया। अंत में ‘विकल्प’ के सभी उपस्थित प्रतिनिधियों एवं आम जनता ने कार्यक्रम का समापन ‘‘हम होंगे कामयाब एक दिन’’ समूह गीत के साथ ‘स्वस्थ संस्कृति का निर्माण करें, पूंजीवादी संस्कृति का नाश हो तथा आम जनता का कला-साहित्य जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए सम्मेलन की अनुगूंज पूरे देश में पहुंचाने का संकल्प व्यक्त किया।

















प्रस्तुति:
दीपक कुमार
सदस्य, अखिल भारतीय कार्यकारिणी ‘विकल्प’
सम्पर्क: बिहार पब्लिक स्कूल, सीवान (बिहार)-841226
चलभाष: 0978283200

1 टिप्पणी:

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